चुगलखोर, रिश्वतखोर, हरामखोर, लतखोर----
ये चार शब्द बड़े पैमाने पर प्रयोग मे लिए जाते हैं, कथा है करीब 6 वर्ष पहले की जब मै गांव मे रहा करता था, खेती करने से लेकर गोबर काढने तक का कार्य होता था और समय जो बचता उसमे गांव की राजनीति और लड़ाई टन्टा में गुजरता, हमारे गांव के पास ही कल्लू राम का घर था वो जब भी घर के बाहर निकलता तो उसे एक ही आवाज सुनाई पड़ती कारे लतखोरवा कहाँ जात बाटे.. हमको लगता था कि बेचारा एतना गरियाया जा रहा है केतना सीधा है पर अरे बप्पा रे... एतना गरियाये जाने के बाद भी उहै करता था जिसके लिये गरियाया जाता था। अब हम सौंचे की इ लतखोर है का... भारतीय गारी अनुसंधान केन्द्र में मैं विशिष्ट गारी की पुस्तकों का वाचन किया तो पता दिमाग का इस्क्रू खुला। चुगलखोर, रिश्वतखोर, हरामखोर, पहिले इन तीनों शब्द के बारे में देखा जाये चुगलखोर (चुगल+खोर) अर्थात् चुगली करने वाला, रिश्वतखोर (रिश्वत+खोर) अर्थात् रिश्वत खाने वाला, हरामखोर (हराम+खोर) अर्थात् हराम मल्लब मुफ्त का खाने वाला, मल्लब की बिना कमाये दूसरों का खाने वाला अर्थात् मित्र, अब बचा आखिरी लतखोर अर्थात् (लत+खोर) लात मल्लब लातन से घूसन से और खोर मल्लब खाने या कूटा जाने वाला अर्थात् जो दिनभर लात घूसे से ठोका जाता हो वही है लतखोर..........................
उम्मीद है अच्छा लगा होगा... ना लगा हो तो मिट्टी का तेल कान में और साइनाइड जुबान पर रख लो...
उम्मीद है अच्छा लगा होगा... ना लगा हो तो मिट्टी का तेल कान में और साइनाइड जुबान पर रख लो...