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जौनपुर की जब बात हो और मूली की बात ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। खाने के मामले में जौनपुर का एक अहम योगदान रहा है चाहे वह मीठा मटन हो या फिर जौनपुर की इमरती सबका अपना एक अलग स्थान है। लेकिन जो बात बहुत कम लोगों को पता होगी वह यह है की जौनपुर की मूली जो की बहोत तेज विकसित होती है और इनका आकार भी और स्थानो के मूलियों से बड़ा होता है तथा ये बड़ी होने के साथ साथ बाकी स्थानों के मूलियों से बहुत ही ज्यादा नरम होती है। इसके पीछे यहां के पानी का वह यहां की मिट्टी का बहुत बड़ा योगदान है जौनपुर में करीब 5 बड़ी नदियां बहती हैं जिनका नाम गोमती सयी बसुही, पीली व वरुणा है। इन नदियों के कारण यहां की मिट्टी बहुत ही ज्यादा उर्वरक है यही कारण है कि जौनपुर में कई प्राचीन सभ्यताएं उदित हुई जिनमें से मदार डीह जिसका उत्खनन डॉ सचिन तिवारी, डॉ अनिल दूबे अादि ने किया तथा उत्तर भारत मे प्रथम बार बाघ का दांत मिला। जौनपुर किले के पास की पुरातात्विक स्थली जिसका उत्खनन श्री सैय्यद जमाल जी ने किया तथा यहाँ से भी कई अति प्राचीन अवशेष मिले, इनके अलावा जौनपुर में कई ऐतिहासिक व मध्यकालीन अवशेष आज भी जौनपुर की शौर्यगाथा का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यह संभव हुआ क्युँकी यहाँ की मिट्टी अति उपजाऊ है, मूली के संदर्भ में बात करते हुए यह भी ध्यान देने योग्य है की आसपास के कुछ और जिलों में भी हमें बड़ी मूलियाँ दिखाई पड़ते हैं। यह बड़े गर्व की बात है कि आज भी जौनपुर का किसान यहां पर मूली की खेती करता है और मूली का एक विशिष्ट स्थान है यहां के तरकारियों में।