मंत्री जी |
कहानी कुछ यूँ है की, वक्त रामलीला का था और मंचन के ठीक कुछ पल पहले पता चला की रावण के मंत्री को जुलाब की शिकायत हो गयी, अब अजीब बिपति आ गयी की मंत्री बिना तो दरबार बेवा का घर दिखेगा। अखिलेश मास्टर का सर का पसीना पता नही कहाँ-कहाँ पहुँच गया बहरहाल जो भी हुआ खोज शुरू हुई की भई बिना मंत्री के कैसे चलेगा, बाकी सारे कलाकार मुर्दाशंख (सफेद रंग) लगाये खड़े थे अपना अपना पाठ तैयार किये खड़े थे।
अब रावण की हालत खराब हो गयी "अरे बप्पा रे गोइठा खाई के हम एतना तैयार किये कहो राम का कोप सरवा आलू भी ना बोये देर होई गवा और ये राजकुमारवा (पिछला मंत्री) फालतू में पूड़ी का न्योता खाने चला गया तबै पेटवै खराब हो गया" रावण यही बार-बार बड़बड़ाये जा रहा था। संचालक महोदय श्री रूद्रमन जी की सांसे अटक गयी लोग पंखी चलाने लगे बात यहाँ अब मंचन की नही बल्की नाक की आ गयी विगत कई दशको से रामलीला क्षेत्र के नामचीन रामलीलों मे से एक था यह रामलीला।
अब वहीं बैठे मटरू जी ने अपनी मूछो पर ताव देते हुए बोले "अरे एहमा कवन बात बा मंत्री सन्त्री ता हम एक मिन्ट मे बनी जाब". अब मटरू जी तो कभी मंच पर खड़े नही हुए थे पहले पर मरता क्या न करता रंग रोगन पोत के लिबास पहना दिया गया और कब क्या बोलना है उसकी टेम्पोरेरी ट्रेनिंग भी दे दी गयी, मंच का परदा गिरा दरबार लगा था, सुरा एवं सुन्दरी का नाच हुआ ईतने मे पता चला की रावण की सेना पुनः हार गई तो रावण को कुम्भकर्ण की याद आई तो उन्होने मंत्री से पूछा की कुम्भकर्ण कहाँ है तो मंत्री बेचारे वैसे ही प्रथम दफा मंच पर खड़े हुए थे मुह खुला और जो निकला उनके मुह से उसका प्रतिफल रोज बेचारे किसी ना किसी के मुख से सुनते रहते हैं उत्तर था " अरे माया (रावण का पाठ करने वाले का वास्तविक नाम) उत सरवा उहीं ओसरवई मे ओलरा बा"। तो यहीं प्रकार से इस कालजयी शब्द का जन्म हुआ।
धन्यवाद
शिवम् दूबे
रावण दरबार