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Tuesday 12 September 2017

परांदा किला व यहाँ का विज्ञान


पिछले ब्लाग मे मै उस्मानाबाद क्षेत्र के अप्रतिम एवं दुर्लभ किले (नलदुर्ग) के बारे में एक लेख लिखा था, वो लेख लिखने के उपरांत यह मन में आया की क्यों ना यहाँ के विज्ञान एवं प्रद्योगिकी पर एक लेख लिखा जाए, और जब बात विज्ञान की आये तो परांदा किले को नकारना शायद ही सही नही होगा, परांदा किला एक थल दुर्ग है जिसके चारों तरफ अन्य दुर्गों की तरह गहरी नाली का निर्माण किया गया है जो की इसको एक सुरक्षा प्रदान करती है तथा इस किले को 18 बुर्जों (Bastions) से सुरक्षित किया गया है| प्रत्येक बुर्ज पर एक तोप को लगाया गया है जो की इस किले को सामरिक रूप से और मजबूत करती हैं| इस किले का निर्माण करीब 16 विं शताब्दी में हुआ था, वैसे सामरिक दृष्टि से इस किले की कोई ख़ास भूमिका नहीं रही है परन्तु इसे हथियार बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता था, नीचे दिए गए चित्रों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की यहाँ पर तोपों का वृहद् रूप से निर्माण होता था|


बांगडी तोप (रिंग कैनन) मकर तोप व पञ्च या अष्ठ धातु तोप आदि यहाँ के मुख्य तोपों में से हैं, परन्तु विश्व विख्यात मलिक ए मैदान तोप का भी निर्माण इसी किले में हुआ था परन्तु बाद में यह तोप जनरल मुरारी पंडित द्वारा बीजापुर ले जाया गया| अभी कुछ दिन पहले यहाँ के सबसे बड़े तोप को कुछ चोरो ने इस तोप को बुरी तरह से छति पहुचाया है जो की हमारे पूरा सम्पदा के प्रति हमारी सोच को दर्शाता है|परांदा किला घूमने के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


यहाँ पर आने के बाद अनेकोनेक प्रकार के तोप दिखाई देते हैं जो की हमे यह जानकारी प्रदान करते हैं की हमारे यहाँ पर विश्व के सबसे उत्तम कारिगर किसी समय निवास करते थे परन्तु समय के साथ साथ यहाँ से तकनीकि का लोप हो गया, उस्मानाबाद महाराष्ट्र का वह अंग है जो एक समय मे केन्द्र था परन्तु वर्तमान मे सरकार की नीतियों ने इस जिले को पिछड़े जिलों की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर दिया है। आगे के ब्लागों मे मै उस्मानाबाद के बारे मे की जानकारियाँ देने की कोशिश करूँगा जो आप सबको रोचक व ज्ञानवर्धक लगेंगी तथा आप सबका ध्यान उस्मानाबाद की तरफ आकर्षित करेंगी।

Monday 4 September 2017

धाराशिव बौद्ध, जैन गुहा

धाराशिव बौद्ध, जैन गुहा के पास

इस गुहा का निर्माण सर्वप्रथम बौद्ध मतानुयायीयों  ने करवाया था तत्पश्चात इसे जैनमतानुयायियों ने भी प्रयोग किया। जैन मतानुयायीयों  ने इन सभी गुहाओं को जैन वास्तुकला से सवारा परन्तु कुछ बौद्ध साछऽयो को वो नही बदल सके जिनमे से चित्र मे चित्रित स्तूप  मुख्य है।



यहाँ की गुफाओं मे एक अलग ही विशेषता दिखाई देती हैं। यहाँ से थोड़ी दूर पर ब्राह्मणी शैली  के भी अपूर्ण गुहाओं की एक श्रृंखला है जो की प्रस्तर के खराब गुड़वत्ता के कारण पूर्ण ना हो सकी थी। 

धाराशिव गुहा क्रमांक तीन के सामने ही एक शिव मंदिर  का भी निर्माण किया गया है जो की 17-18वीं शताब्दी का शिव मंदिर भी उपस्थित है जिसे देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये व्यापारिक मार्ग कई शादियों तक प्रयोग मे रहा होगा। 

                  यह गुहा श्रृंखला प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर स्थित है जिससे इसकी महत्ता और भी बढ जाती है। आसपास का सम्पूर्ण भौगोलिक दशा भी प्राचीन मानव के रहन सहन के लिए अनुकूल है तथा यहाँ पर उपस्थित तलाब  जो कि वास्तविकता मे व्रिहद आकार का है जल की उपलब्धता के दृष्टिकोण से अनुकूल है। 


  यहाँ पर उपस्थित मूर्तियाँ अत्यन्त ही मनमोहक हैं तथा ये जीवंत होने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। यहां पर स्थित पार्श्वनाथ  की प्रतिमाएं विशाल आकार की है तथा उनमे मूर्ति निर्माण कला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है।

 यहां पर जाने के उपरान्त एक विशिष्ट अनुभव की प्राप्ति हुयी। वर्तमान समय मे पत्थर के खराब गुड़वत्ता होने के कारण ये दिनबदिन खत्म होने की तरफ अग्रसर है।  



ये गुफाएँ महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले मे उपस्थित हैं उस्मानाबाद जिला मध्य काल के अलावा प्राचीन काल के कई रहष्यों को अपने में समाहित किए हुए है जिसका भ्रमण हम सभी इतिहास प्रेमियों को एक विशिष्ट अनुभव से कराता है। 

नलदुर्ग (उस्मानाबाद)

नलदुर्ग (उस्मानाबाद)
मिशन उस्मानाबाद- भाग 1

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद में वैसे तो कई पुरास्थल मौजूद हैं। यहीं के परांदा किले से विश्व प्रसिद्द मलिक ए मैदान तोप का निर्माण हुआ था जो की अब बीजापुर में स्थित है। परन्तु यहीं उस्मानाबाद में एक किला मौजूद है जो की आज तक के मेरे देखे हुए किलों में सबसे उत्क्रिस्ट व सुंदर लगा | यह माना जाता है की इसका निर्माण राजा नल ने सर्वप्रथम करवाया था तथा इसी वजह से इसका नाम नलदुर्ग पड़ा। इसके बनने का काल कल्याणी के चालुक्यों के समय से है, कालांतर में बहमनी काल में व आदिल शाही शासकों के समय में इस दुर्ग को कई स्थापत्य कला के नमूनों से सजाया गया जिसमे इसमें निर्मित जलदुर्ग व नव बुर्ज शामिल हैं चित्रों मे नव बुर्ज व जल दुर्ग को दिखाया गया है| 

वास्तविकता में यह किला अपनी स्थापत्य कला के लिए विश्व स्तरीय रूप से उत्तम है, परन्तु करेंगे क्या आज यही अपने वजूद को बचा पाने में असफल हो रहा है, सरकार व इसके संरक्षण कर्ता कुम्भकर्ण बने सो रहे है| और यह अपने स्वर्णिम इतिहास के पन्नों को बचा नहीं पा रहा है। इस किले का भ्रमण करते हुये यह लगता है कि शायद दो दिन भि इस किले को घूमने के लिये कम हैं। प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ यह किला स्थापत्य व अन्य कई कहानियाँ अपने अंदर बसा कर रखा है। इस किले के अंदर एक नदी बहती है जिसपर जलमहल का निर्माण किया गया है तथा इस किले के  एक तरफ खाई है जो वाह्य आक्रमणों से इस किले की सुरक्षा करता था। इस किले के उपली बुर्ज पर तीन तोप रखने का स्थान है जो लम्बी दूरी पर तोप के गोले को दागने मे सक्षम थी।  यह किला वास्तविकता मे भारत का एक महत्वपूर्ण किला है, तथा व्यक्ति को अपने जीवन काल मे एक बार यहाँ जाना चाहिये।

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