ओक्का बोक्का तीन तोलक्का की आवाज सहसा लोगो के कानो मे गई सब के अन्दर ऊर्जा का संचार हो गया लगा की कठोर मेनहत के बाद भी सब उत्तेजित हो गयें और हो भी क्यों ना रामचरन का नौटंकी जो चालू हो गया था। क्या बच्चे क्या बूढे सब के सब थिरकने लगे, ढपली की आवाज लोगो को नया ऊर्जा देने लगी थी। रामचरन अपने ही लहजे में कमर हिलाकर सम्मी कपूर को भी शर्मिंदा कर देने वाला नृत्य दिखाना चालू किये वाह, हम भी छुटकू से थे पर सबसे आगे वाली लाईन में खड़े हो नौटंकी का मजा ले रहे थे। गांव मे कोई भी त्योहार हो विवाह हो रामचरन को ही समां बाँधने के लिये बुलाया जाता था। हमारा बचपन रामचरन का नौटंकी देखते हुए बीता कहाँ आजकल लोग शाहरुख और सलमान के फैन हैं इधर हम रामचरन के फैन थे। समय बीता गाँवो मे भी आधुनिकता ने पैर पसारा टेलीवीजन, डीजे आदि आ गये लोग रामचरन को भूलने लगे और अन्त मे एक वक्त आया जब नौटन्की होती क्या है लोगो को पता ही ना रहा। रामचरन भी कहाँ चले गये कोई खबर ना रही. नौटंकी एक अति प्राचीन विधा है रंगमंच की जो एक अद्भुत् ऊर्जा देती है परन्तु ना अब वो नट (नौटन्की करने वाले) रहें ना रामचरन अब रही तो शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी, वाह आधुनिकता और इसको अपना के अपनी पहचान खोने वाले लोग.
Showing posts with label Avadhi Ramleela. Show all posts
Showing posts with label Avadhi Ramleela. Show all posts
Wednesday, 8 November 2017
रामचरन की नौटंकी
ओक्का बोक्का तीन तोलक्का की आवाज सहसा लोगो के कानो मे गई सब के अन्दर ऊर्जा का संचार हो गया लगा की कठोर मेनहत के बाद भी सब उत्तेजित हो गयें और हो भी क्यों ना रामचरन का नौटंकी जो चालू हो गया था। क्या बच्चे क्या बूढे सब के सब थिरकने लगे, ढपली की आवाज लोगो को नया ऊर्जा देने लगी थी। रामचरन अपने ही लहजे में कमर हिलाकर सम्मी कपूर को भी शर्मिंदा कर देने वाला नृत्य दिखाना चालू किये वाह, हम भी छुटकू से थे पर सबसे आगे वाली लाईन में खड़े हो नौटंकी का मजा ले रहे थे। गांव मे कोई भी त्योहार हो विवाह हो रामचरन को ही समां बाँधने के लिये बुलाया जाता था। हमारा बचपन रामचरन का नौटंकी देखते हुए बीता कहाँ आजकल लोग शाहरुख और सलमान के फैन हैं इधर हम रामचरन के फैन थे। समय बीता गाँवो मे भी आधुनिकता ने पैर पसारा टेलीवीजन, डीजे आदि आ गये लोग रामचरन को भूलने लगे और अन्त मे एक वक्त आया जब नौटन्की होती क्या है लोगो को पता ही ना रहा। रामचरन भी कहाँ चले गये कोई खबर ना रही. नौटंकी एक अति प्राचीन विधा है रंगमंच की जो एक अद्भुत् ऊर्जा देती है परन्तु ना अब वो नट (नौटन्की करने वाले) रहें ना रामचरन अब रही तो शीला की जवानी, मुन्नी की बदनामी, वाह आधुनिकता और इसको अपना के अपनी पहचान खोने वाले लोग.
Friday, 27 October 2017
संकट की कुम्भकर्ण बने कौन ?
चौखड़ा गाँव में रामलीला का वक्त था, सभी कलाकारों का चयन हो गया हमै भी "ईंद्र, दशरथ, वज्रदंत, खरदूशण आदि का पाठ मिला था, अब हम भी ठहरें मजे हुये कलाकार, बस इ समझ लीजिये कि हम हैं आलू जहाँ देख्यो वहीं फेट्ट। अब सब सही चलने लगा लेकिन सुबह खेत की तरफ जाते वक्त हमारे सवा मन के माया पंडित जी फिसलियाई के करियाहुँ तोड़ लिये और बदलापुर के रस्पताल में भर्ती हो गयें। अब वहि वेट कैटेगरी में बाकी के बचे कल्लू, अजीत आदि जो समझ लिजिये कि एकदमै लजाये जा रहे थे (अरे बप्पा रे हम न बनब कुम्भकर्ण एतनउ मोटे ना है हम)। अब पूरा रामलीला संकट में अब बताइये कि बिना कुम्भकर्ण रामलीला लगेगा कैसा जैसे बिन पानी के मछरी, कुम्भकर्ण का पाठ करने वालों की भारी कमी पड़ गयी | पुराने कलाकारों की तरफ इशारा करते हुये ठेला गुरू बोले कहो फलाने अबौ पोकरी (चिल्ला) लेबा कि नाये ? कहाँ हो अब हलख से आवाज नाइ निकलि पावत और आप चिल्लाने की बात करते हैं। श्रीराम पंडित जी जो की सवा दो सौ किलो के थे और विगत कई वर्षों से कुम्भकर्ण बनते आ रहे थे की उम्र जवाब दे गयी थी नही तो अकेले वे परात भर गुड़ ढकोस जाते थे, और जब चिल्लाते थे कुम्भकर्ण बन लगता था कि बादल कड़क रहा है पर उम्र का तकाजा कि वे बेचारे अब सही से चलने में भी असमर्थ हैं। अब बाकी का कोई और था नही, अब नये पात्र की खोज शुरू हुई अखिलेश तिवारी जी को एक जुगति सूझी और मेरी तरफ ईशारा करते हुए बोले तुम कर लो, पहिले तो हम सकपका गये कहो राम के कोप कहाँ राजा भोज और कहाँ हम गंगू तेली, कहाँ हम सिकिया पहलवान और कहाँ कुम्भकर्ण महान, एकदमै से नही जम रहा था पर हममे भी कुछ पिलस प्वाँइट था जैसे कि हाईट मे हम ६ फुटी बाँके नवजवान एकदम रोबीली आवाज, अब मरता क्या न करता इतना सारा पाठ कर रहे थे और इ लगा चैलेंजिग अब हाँ बोलना पडा़। पाठ का दिन आया 3 गद्दे, रूई इत्यादि बाँध कर मुझे भी 400 किलो का दिखने वाला बना दिया गया, मंचन हुआ, आवाज से पूरा वायुमंडल स्पंदन करने लगा मानो की शरीर में बिजली का संचार हो गया जनता पूरी तरह से रामलीला मे लीन हो गयी हमे याद भी ना रहा हमने क्या किया कैसा किया पर तालियों व हसीं ने बता दिया की कैसा मंचन हुआ। पाठ पूरा हुआ चिखुरी से लेकर ठेला गुरू तक सब ने गले लगा लिया लगा कि हमने फतह कर लिया। हमारे पिता जि भी कुम्भकर्ण को जगाने में शामिल थे, उस प्रकृया में चोंटे आयी थी हाँथ रक्तरंजित हो चुका था, तब से अब तक कुम्भकर्ण पर मेरा कॉपी रॉइट हो गया। आज भी जब हाँथ का वो चोट देखते हैं तो वहीं चौखड़ा गाँव की मीठी सुरीली यादें याद आती हैं। नीचे लिखा यह डायलॉग हमेशा मेरे दिल को छू जाता है।
क्या तुम्ही अवधपति हो क्या तुम्ही जानकी जीवन हो।
रावण से रण करने वाले क्या तुम्ही दशरथ नंदन हो।।
Monday, 23 October 2017
उहीं ओसरवई मे ओलरा बा !
मंत्री जी |
कहानी कुछ यूँ है की, वक्त रामलीला का था और मंचन के ठीक कुछ पल पहले पता चला की रावण के मंत्री को जुलाब की शिकायत हो गयी, अब अजीब बिपति आ गयी की मंत्री बिना तो दरबार बेवा का घर दिखेगा। अखिलेश मास्टर का सर का पसीना पता नही कहाँ-कहाँ पहुँच गया बहरहाल जो भी हुआ खोज शुरू हुई की भई बिना मंत्री के कैसे चलेगा, बाकी सारे कलाकार मुर्दाशंख (सफेद रंग) लगाये खड़े थे अपना अपना पाठ तैयार किये खड़े थे।
अब रावण की हालत खराब हो गयी "अरे बप्पा रे गोइठा खाई के हम एतना तैयार किये कहो राम का कोप सरवा आलू भी ना बोये देर होई गवा और ये राजकुमारवा (पिछला मंत्री) फालतू में पूड़ी का न्योता खाने चला गया तबै पेटवै खराब हो गया" रावण यही बार-बार बड़बड़ाये जा रहा था। संचालक महोदय श्री रूद्रमन जी की सांसे अटक गयी लोग पंखी चलाने लगे बात यहाँ अब मंचन की नही बल्की नाक की आ गयी विगत कई दशको से रामलीला क्षेत्र के नामचीन रामलीलों मे से एक था यह रामलीला।
अब वहीं बैठे मटरू जी ने अपनी मूछो पर ताव देते हुए बोले "अरे एहमा कवन बात बा मंत्री सन्त्री ता हम एक मिन्ट मे बनी जाब". अब मटरू जी तो कभी मंच पर खड़े नही हुए थे पहले पर मरता क्या न करता रंग रोगन पोत के लिबास पहना दिया गया और कब क्या बोलना है उसकी टेम्पोरेरी ट्रेनिंग भी दे दी गयी, मंच का परदा गिरा दरबार लगा था, सुरा एवं सुन्दरी का नाच हुआ ईतने मे पता चला की रावण की सेना पुनः हार गई तो रावण को कुम्भकर्ण की याद आई तो उन्होने मंत्री से पूछा की कुम्भकर्ण कहाँ है तो मंत्री बेचारे वैसे ही प्रथम दफा मंच पर खड़े हुए थे मुह खुला और जो निकला उनके मुह से उसका प्रतिफल रोज बेचारे किसी ना किसी के मुख से सुनते रहते हैं उत्तर था " अरे माया (रावण का पाठ करने वाले का वास्तविक नाम) उत सरवा उहीं ओसरवई मे ओलरा बा"। तो यहीं प्रकार से इस कालजयी शब्द का जन्म हुआ।
धन्यवाद
शिवम् दूबे
रावण दरबार
Subscribe to:
Posts (Atom)
Featured post
Military administration in ancient India
{Military system in Epic and Purana} Every nation has its earliest history,- a history of its hard struggle with nature and host...
-
p.c. http://www.fao.org/docrep/t4660t/t4660t04.jpg आज से करीब 5०-6० वर्ष पहले तक कोल्हू का प्रचलन खूब था| कई पुरानी चलचित्रों...
-
पहाड़गढ मौरैना आदि काल से ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते आ रहा है। यहीं पर पुरापाषाणकालीन शैल चित्रों की भी प्राप्ति हुई है जो की मध...
-
पी.सी.https://twitter.com/bjp_chor_hai हट चिरकुट नहीं तो, भाग चिरकुट, धत चिरकुट, चिरकुटअई होबे, ये सब पूर्वांचल मे अक्सर सुनाई दे पड...