चौखड़ा गाँव में रामलीला का वक्त था, सभी कलाकारों का चयन हो गया हमै भी "ईंद्र, दशरथ, वज्रदंत, खरदूशण आदि का पाठ मिला था, अब हम भी ठहरें मजे हुये कलाकार, बस इ समझ लीजिये कि हम हैं आलू जहाँ देख्यो वहीं फेट्ट। अब सब सही चलने लगा लेकिन सुबह खेत की तरफ जाते वक्त हमारे सवा मन के माया पंडित जी फिसलियाई के करियाहुँ तोड़ लिये और बदलापुर के रस्पताल में भर्ती हो गयें। अब वहि वेट कैटेगरी में बाकी के बचे कल्लू, अजीत आदि जो समझ लिजिये कि एकदमै लजाये जा रहे थे (अरे बप्पा रे हम न बनब कुम्भकर्ण एतनउ मोटे ना है हम)। अब पूरा रामलीला संकट में अब बताइये कि बिना कुम्भकर्ण रामलीला लगेगा कैसा जैसे बिन पानी के मछरी, कुम्भकर्ण का पाठ करने वालों की भारी कमी पड़ गयी | पुराने कलाकारों की तरफ इशारा करते हुये ठेला गुरू बोले कहो फलाने अबौ पोकरी (चिल्ला) लेबा कि नाये ? कहाँ हो अब हलख से आवाज नाइ निकलि पावत और आप चिल्लाने की बात करते हैं। श्रीराम पंडित जी जो की सवा दो सौ किलो के थे और विगत कई वर्षों से कुम्भकर्ण बनते आ रहे थे की उम्र जवाब दे गयी थी नही तो अकेले वे परात भर गुड़ ढकोस जाते थे, और जब चिल्लाते थे कुम्भकर्ण बन लगता था कि बादल कड़क रहा है पर उम्र का तकाजा कि वे बेचारे अब सही से चलने में भी असमर्थ हैं। अब बाकी का कोई और था नही, अब नये पात्र की खोज शुरू हुई अखिलेश तिवारी जी को एक जुगति सूझी और मेरी तरफ ईशारा करते हुए बोले तुम कर लो, पहिले तो हम सकपका गये कहो राम के कोप कहाँ राजा भोज और कहाँ हम गंगू तेली, कहाँ हम सिकिया पहलवान और कहाँ कुम्भकर्ण महान, एकदमै से नही जम रहा था पर हममे भी कुछ पिलस प्वाँइट था जैसे कि हाईट मे हम ६ फुटी बाँके नवजवान एकदम रोबीली आवाज, अब मरता क्या न करता इतना सारा पाठ कर रहे थे और इ लगा चैलेंजिग अब हाँ बोलना पडा़। पाठ का दिन आया 3 गद्दे, रूई इत्यादि बाँध कर मुझे भी 400 किलो का दिखने वाला बना दिया गया, मंचन हुआ, आवाज से पूरा वायुमंडल स्पंदन करने लगा मानो की शरीर में बिजली का संचार हो गया जनता पूरी तरह से रामलीला मे लीन हो गयी हमे याद भी ना रहा हमने क्या किया कैसा किया पर तालियों व हसीं ने बता दिया की कैसा मंचन हुआ। पाठ पूरा हुआ चिखुरी से लेकर ठेला गुरू तक सब ने गले लगा लिया लगा कि हमने फतह कर लिया। हमारे पिता जि भी कुम्भकर्ण को जगाने में शामिल थे, उस प्रकृया में चोंटे आयी थी हाँथ रक्तरंजित हो चुका था, तब से अब तक कुम्भकर्ण पर मेरा कॉपी रॉइट हो गया। आज भी जब हाँथ का वो चोट देखते हैं तो वहीं चौखड़ा गाँव की मीठी सुरीली यादें याद आती हैं। नीचे लिखा यह डायलॉग हमेशा मेरे दिल को छू जाता है।
क्या तुम्ही अवधपति हो क्या तुम्ही जानकी जीवन हो।
रावण से रण करने वाले क्या तुम्ही दशरथ नंदन हो।।
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