पिछले ब्लाग मे मै उस्मानाबाद क्षेत्र के अप्रतिम एवं दुर्लभ किले (नलदुर्ग) के बारे में एक लेख लिखा था, वो लेख लिखने के उपरांत यह मन में आया की क्यों ना यहाँ के विज्ञान एवं प्रद्योगिकी पर एक लेख लिखा जाए, और जब बात विज्ञान की आये तो परांदा किले को नकारना शायद ही सही नही होगा, परांदा किला एक थल दुर्ग है जिसके चारों तरफ अन्य दुर्गों की तरह गहरी नाली का निर्माण किया गया है जो की इसको एक सुरक्षा प्रदान करती है तथा इस किले को 18 बुर्जों (Bastions) से सुरक्षित किया गया है| प्रत्येक बुर्ज पर एक तोप को लगाया गया है जो की इस किले को सामरिक रूप से और मजबूत करती हैं| इस किले का निर्माण करीब 16 विं शताब्दी में हुआ था, वैसे सामरिक दृष्टि से इस किले की कोई ख़ास भूमिका नहीं रही है परन्तु इसे हथियार बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता था, नीचे दिए गए चित्रों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की यहाँ पर तोपों का वृहद् रूप से निर्माण होता था|
बांगडी तोप (रिंग कैनन) मकर तोप व पञ्च या अष्ठ धातु तोप आदि यहाँ के मुख्य तोपों में से हैं, परन्तु विश्व विख्यात मलिक ए मैदान तोप का भी निर्माण इसी किले में हुआ था परन्तु बाद में यह तोप जनरल मुरारी पंडित द्वारा बीजापुर ले जाया गया| अभी कुछ दिन पहले यहाँ के सबसे बड़े तोप को कुछ चोरो ने इस तोप को बुरी तरह से छति पहुचाया है जो की हमारे पूरा सम्पदा के प्रति हमारी सोच को दर्शाता है|परांदा किला घूमने के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
यहाँ पर आने के बाद अनेकोनेक प्रकार के तोप दिखाई देते हैं जो की हमे यह जानकारी प्रदान करते हैं की हमारे यहाँ पर विश्व के सबसे उत्तम कारिगर किसी समय निवास करते थे परन्तु समय के साथ साथ यहाँ से तकनीकि का लोप हो गया, उस्मानाबाद महाराष्ट्र का वह अंग है जो एक समय मे केन्द्र था परन्तु वर्तमान मे सरकार की नीतियों ने इस जिले को पिछड़े जिलों की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर दिया है। आगे के ब्लागों मे मै उस्मानाबाद के बारे मे की जानकारियाँ देने की कोशिश करूँगा जो आप सबको रोचक व ज्ञानवर्धक लगेंगी तथा आप सबका ध्यान उस्मानाबाद की तरफ आकर्षित करेंगी।