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Wednesday, 1 November 2017

बकलोल कौन है ?

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यह प्रश्न कई बार दिल को कचोटता है झकझोरता है परन्तु ग्यानेन्द्रियाँ कार्य करने मे अकुशलता का प्रमाण हर पल देती रहती हैं, पांडे जी के यहाँ बनारसी खाते हुए कई बार बकलोल शब्द का प्रयोग होता था परन्तु बकलोलियत की परिभाषा ? एक दिन कचकचाते हुए अपने यहाँ के मशहूर सोखा जिन्होने कल्लू भूत को एक पल मे जम्पुर भेजदिया था से पूछ ही लिया की इ बकलोल है क्या, शोखा का पूरा ग्यान धरा का धरा रह गया और वह भी बकलोलियत को बयाँ ना कर पाया मानो मैने प्रश्न ना अपितु किसी के म्रित्यु का साधन पूँछ लिया था, बंसवारी की कश्मीरी चुड़ैल भी मेरे प्रश्न को सुनकर बदहवास हो गयी हर जगहँ चर्चा फैल गयी इस्तेहार छप गये की जो भी बकलोलियत की परिभाषा समझायेगा उसको मुहमांगा इनाम मिलेगा, अस्सी पर बैठे पंडों मे भी जंग छिड़ गयी कि अरे रामखेलान बकलोल ई बकलोल का होला ? पर कोई उत्तर ना मिला, कइयों ने तो प्रधानमंत्री के पास पत्र लिखकर ये भी सिफारिस किया की इब तो बकलोल को राष्ट्रिय शब्द सूची मे प्रथम स्थान पर रखा जाये,
पर इतना सब कर के भी कुछ जवाब ना मिला और अंतोगत्वा यह फैसला लिया गया कि बकलोल जैसा था वैसा ही रहेगा व जैसा की बकलोल बोलने मे अच्छा लगता है, मानसिक व शारीरिक तसल्ली मिलती है इसे बोलने मे तो समस्त मानव जात को बकलोलियत के सीमा रेखा मे लाना उचित है।
सार- हम सब बकलोल है कहीं ना कहीं कभी ना कभी

©® शिवम् दूबे
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