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कुछ मोहब्बत है।
या तेरी चाहत है।।
या तेरी चाहत है।।
ना जाने क्यूँ अब भी।
मिलती नही राहत है।।
तू जब मिली थी पहली दफा। देखते ही परवान चढ गया था प्यार।।
कसम खा लिया था की ना होंगे बेवफा।आज मुझे ही वो कसम याद है।।
जहाँ भी है वो आबाद है।
हम ही तवाफे इश्क मे बर्बाद हैं।।
ना जाने क्यूँ आज भी मेरे दिल मे प्यार है।
कसम हमेशा क्यूँ याद रहती है।।
ये क्यूँ ना टर्मस और कंडिशन से आती है।की कुछ ऊपर से लेकर मान जाये।।
और आदमी सब कुछ भूल जाये।ऐसा होना सम्भव नही।।
उसे भूलना मुमकिन नहीं। जिंदा रहना जरूरी है।।
पर उस बिना जीना गवारा नहीं।
अब तो कुछ वर्डसवर्थ वाले ख्याल आते हैं।।
युटोपिया जैसी एक दुनिया बनाते हैं। जहाँ सब प्यार के फूल खिलाते हैं।।
महबूबा भी मेरी वहीं आती है।
मेरे जिस्म से आते ही लिपट जाती है।।
प्यार वहीं परवान चढता है। कामदेव भी वहीं बसता है।।
हर तरफ बस प्यार ही प्यार है। लबों-जिस्मों के बीच तकरार है।।
ये सब वहीं युटोपिया मे होता है।
असल मे तो ये दिल रोता है।।
बार बार हर बार बस ये यही पूछता है। कि 'संगीन' आखिर ये प्यार क्यूँ होता है?
©®शिवम् दूबे