पहाड़गढ मौरैना आदि काल से ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते आ रहा है। यहीं पर पुरापाषाणकालीन शैल चित्रों की भी प्राप्ति हुई है जो की मध्यपाषाण युग से लेकर शुरूआती इतिहास के समय तक का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। इन शैल चित्रों को सर्वप्रथम अमेरिका मे मिशिगन विश्वविद्यालय मे कार्यरत प्रों डी.पी. द्वारकेश ने किया था। मै यहाँ पर विगत 3 वर्षों मे कई अन्वेशण किया जिनसे मुझे कई प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त हुईं तथा कई नये पुरास्थलों का पता भी चला। यहाँ के शैलचित्र पुरास्थल का नाम लेखीछाज है अर्थात् लिखा हुआ छज्जा।
"यहाँ पर प्रचलित कहानियों पर ध्यान दिया जाये तो यह पता चलता है कि यहाँ पर एक चुडैल का वास था तथा वह देखने मे मेनका से भी सुन्दर थी। एक बार वहीं पास के गाँव के एक व्यक्ति ने उसे देख लिया और वह उसके पीछे पागल हो गया। वह चुड़ैल भी उससे प्रेम करने लगी समय बीतते गया तथा एक दिन उस आदमी का एक दोस्त उससे पूछा की रोज रात को 12 बजे कहाँ जाते हो तो उसने अपनी यह कहानी बताई। कहानी सुनने के बाद उसका दोस्त भी उस चुड़ैल को देखने गया, तथा उसे देखते ही वह भी उसके प्यार मे गिर गया, तथा वह एक षड़यंत्र बनाया और लेखीछाज के उपर से ही धोखे से अपने दोस्त को झोंक दिया। अपने प्रेमी को मृत अवस्था मे देखकर वह चुड़ैल पागल हो गयी और उसने अपने मृत प्रेमी के खून से ही यह सारे चित्र बनायी" ।
यहाँ से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर एक प्रतिहार कालीन मंदिर उपस्थित है जो आकार मे वृहद तो नही है परन्तु अपने मे कई प्रकार की खूबियों को समाहित किये हुये है। यह मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है तथा इस मंदिर के सामने एक तालाब का भी निर्माण करवाया गया है।
यह मंदिर करीब 9वींसे 10वीं शताब्दी के करीब बनवाया गया था तथा इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव हैं। गर्भगृह के बाहर नंदी की मूर्ती उपस्थित है तथा इसके गर्भगृह के द्वार को बड़ी कुशलता से सजाया गया है। इस मंदिर के मंडप में छतों पर कृष्ण लीला का भी अंकन किया गया है। काम मे लिप्त जोड़ों को भी इसमें प्रस्तुत किया गया है। (नीचे के चित्रों को देखें)
मंदिर के वाह्य दीवारों पर विष्णू, वाराह आदि के मूर्तियों को दीवारों पर लगाया गया है। सामान्यतया शिव से सम्बन्धित मंदिरों मे विष्णुँ के अवतारों का व स्वयं विष्णुँ की प्रतिमा मंदिरों के दीवारों पर लगायी जाती है।
नीचे दिये गये वीड़ियो मे मूर्तियों व मंदिर के अन्य अंगो को देखें।