धाराशिव बौद्ध, जैन गुहा के पास
इस गुहा का निर्माण सर्वप्रथम बौद्ध मतानुयायीयों ने करवाया था तत्पश्चात इसे जैनमतानुयायियों ने भी प्रयोग किया। जैन मतानुयायीयों ने इन सभी गुहाओं को जैन वास्तुकला से सवारा परन्तु कुछ बौद्ध साछऽयो को वो नही बदल सके जिनमे से चित्र मे चित्रित स्तूप मुख्य है।
यहाँ की गुफाओं मे एक अलग ही विशेषता दिखाई देती हैं। यहाँ से थोड़ी दूर पर ब्राह्मणी शैली के भी अपूर्ण गुहाओं की एक श्रृंखला है जो की प्रस्तर के खराब गुड़वत्ता के कारण पूर्ण ना हो सकी थी।
धाराशिव गुहा क्रमांक तीन के सामने ही एक शिव मंदिर का भी निर्माण किया गया है जो की 17-18वीं शताब्दी का शिव मंदिर भी उपस्थित है जिसे देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये व्यापारिक मार्ग कई शादियों तक प्रयोग मे रहा होगा।
यह गुहा श्रृंखला प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर स्थित है जिससे इसकी महत्ता और भी बढ जाती है। आसपास का सम्पूर्ण भौगोलिक दशा भी प्राचीन मानव के रहन सहन के लिए अनुकूल है तथा यहाँ पर उपस्थित तलाब जो कि वास्तविकता मे व्रिहद आकार का है जल की उपलब्धता के दृष्टिकोण से अनुकूल है।
यहाँ पर उपस्थित मूर्तियाँ अत्यन्त ही मनमोहक हैं तथा ये जीवंत होने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। यहां पर स्थित पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं विशाल आकार की है तथा उनमे मूर्ति निर्माण कला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है।
यहां पर जाने के उपरान्त एक विशिष्ट अनुभव की प्राप्ति हुयी। वर्तमान समय मे पत्थर के खराब गुड़वत्ता होने के कारण ये दिनबदिन खत्म होने की तरफ अग्रसर है।
ये गुफाएँ महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले मे उपस्थित हैं उस्मानाबाद जिला मध्य काल के अलावा प्राचीन काल के कई रहष्यों को अपने में समाहित किए हुए है जिसका भ्रमण हम सभी इतिहास प्रेमियों को एक विशिष्ट अनुभव से कराता है।
wahh shandaar
ReplyDelete@Thanks siddharth will try to write more amazing things
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