झरझरी मस्जिद
यह मस्जिद सिपाह जौनपुर मे स्थित है इसका निर्माण इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। यह हजरत शैद जहाँ अजमनी के जौनपुर आगमन के उपलक्ष्य मे बनायी गयी थी। इस मस्जिद को जौनपुर की शर्की कला का उत्क्रिष्ट उदाहरण माना जाता है तथा इसके उपर कुरान की आयते लिखी गयी हैं जिसको लिखने की शैली डगरा है, अलेक्झेन्डर कनिगंघम तथा फ्यूहरर ने इसके उपर की गयी कलाकारी तथा झरोखों को देख कर इसका नाम झंझरी रखा था। इसके मेहराबों को अति कुशलता के साथ तराशा गया है, यह मस्जिद अटाला व जामी से छोटी है परन्तु नक्काशी व कलाकारी की द्रिष्टिकोण से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज सिर्फ इस मस्जिद का मेहराब बचा हुआ है तथा शेष भाग बाढ व लोदियों द्वारा जमींदोज कर दिया गया। उसको समर्पित मेरी कविता. ये मेरी झरझरी पर पहली कोशिश है जिसे मै आपसबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ| झरझरी मस्जिद |
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ये अवशेष बोल रहे अपनी एक कहानी|
कभी किसी जमाने मे थी ये जानी पहचानी||
इनकी थी चारो दिशाओं मे अपनी शानी |
ना चलती थी किसी की ईनके आगे मनमानी ||
ईब्राहिम सर्की ने ही ईसकी नींव डाली|
इसको पूरा पूर्ण करा के भी उसने ना हिम्मत हारी||
नाम दिया मौलाना कि याद मे इसको झरझरी|
आया फिर जौनपुर मे सिकन्दर लोदी||
तोड दिया मेहराबो को उसनो जल्दी जल्दी|
चली गयी अन्धकार मे इसकी गरिमा थोडी ||
1932 के बाढ करदी बाकी कसर पूरी|
अब ये जस की तस है जौनपुर मे खडी||
लोग तो लोग प्रशासन भी कुम्भकर्णी निद्रा मे सोरही|
कहे कवि शिवम् ये अवशेष बोल रहे है अपनी स्वर्णिम कहानी||
जो अब तक है लोगो को अनजानी|
जो है ना जानी पहचानी ||
झरझरी मस्जिद लेखन |
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