गाँधी मात्र
एक इंसान नही हैं वो अपने में एक युग हैं। किसी सरकार या किसी समुदाय में इतनी
कुवत नही की वो पूरा का पूरा युग मिटा सके। गाँधी को थे के अलावाँ हैं कहने का
तात्पर्य यही है कि गाँधी आज भी जिंदा हैं बापू आज भी जिंदा है। गोडसे हत्यारे के
बन्दूक से निकली गोली ने बापू को शरीर रूपी बन्धन से छुड़ाया था पर मार ना सका।
अभी हाल में ही दिल्ली से ग्वालियर जाने के लिये मै जनरल बोगी में चढा, भारतीय रेल
की वो बोगी लोगों से खचाखच भरी हुई थी मानो ऐसा लगता था की देश की एक बड़ी आबादी
संकट में आकर विस्थापित हो रही हो। नहीं लगता है कि ये शरीर से मात्र इंसान हैं अंदर
से जानवर अरे भला कोई इतनी भीड़ में खड़े-खड़े कैसे सफर कर सकता है। मैं ट्रेन की
बदबूदार बाथरूम के पास खड़ा रहा ट्रेन नई दिल्ली से चली हल्की हल्की हवा मेरे
चेहरे को छुये जा रही थी सामने मेरे असली भारत था वो भारत जो सोने की चिड़िया कहा
जाता था। धीरे-धीरे मैं खयालों में खोते चले गया सामने अफ्रिका का स्टेशन था एक
आदमी सूट बूट में पहली क्लास के बोगी में चढ रहा है उसके हाँथ में पहली क्लास का
टिकट भी था पर उसे धक्के मार के निकाल दिया गया क्युँकी वो आदमी काला था गाँधी था।
सहसा मै अपने को कलकत्ता के एक हॉटेल के आगे खड़ा पाया, उस हॉटेल के आगे एक पट्टी
लगी हुई थी कुत्तों और भारतियों को आना मना है। अचानक एक दादा का पैर मेरे पैर पर
पड़ा और मेरी नींद खुली आँखे डबडबाई हुई थी। सामने भारत था अंग्रेजों के जाने के
बाद भारत में रंग भेद कुछ कम हुआ पर रूपया ईश्वर हो गया पैसा है तो आप ट्रेन मे
अच्छे से सफर कर सकते हैं पैसा नही है तो फेंक दिये जाओगे। गाँधी जी जिस जाति रूपी
कुष्ठ को खत्म करना चाहते थे वो अब कैंसर बन चुका है। उनकी हत्या करने वालों ने
जाति के आगे निकल गये और धर्म की तकरार भी लेते आये। गाँधी नें लोगों को मन्दिर-मस्जिद
तोड़ने से रोका था पर उनके हत्यारे आज वही तोड़ रहे हैं। महात्मा गाँधी आज के
अत्यधिक तीव्र दिमाग वाले पढे लिखे ढपोरसंखों द्वारा गरियाये जाते हैं, गरियाने
में वही लोग अधिक हैं जिन्होने कभी गाँधी को पढा तक नही, समझा तक नही, जिस व्यक्ति
के व्यक्तित्व के आगे सारी दुनिया नत मस्तक हो गयी जिसकी शिक्षा देश-विदेश तक
पढायी जाती है आज वह गाँधी गाली का पात्र हो गया है। वाह राजनीति सही भी है आज
माहौल है की मिथकों को सम्मान मिल रहा है गाय माता है पर बेटियाँ मात्र यौनसुख का
साधन, प्राचीन नारी सम्मान के लिये जान ले लेने की परम्परा है पर आधुनिक बेटियों
के लिये चुप्पी। ऐसे समाज से क्या अपेक्षा की जा सकती है? गाँधी आज भी जिन्दा हैं दबे हैं कहीं इस अराजक
संसार में पर उम्मीद है वह लाठी वाला बूढा फिर चलेगा रघुपति राघव का गान होगा और
भारत का राजनीतिक दोहन करने वाले धर्मों को लड़ाने वालों का सफाया होगा। उम्मीद है
और उम्मीद पर दुनिया कायम है।
चलता हूँ
आपको उम्मीद व गिरिजा कुमार माथुर के कविता के सहारे छोड़ कर-
होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब
एक दिन
मन में है
विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब
एक दिन।
हम चलेंगे
साथ-साथ
डाल हाथों में
हाथ
हम चलेंगे
साथ-साथ, एक दिन
मन में है
विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे
साथ-साथ एक दिन।
होगी शांति चारों ओर
होगी शांति
चारों ओर, एक दिन
मन में है
विश्वास, पूरा है विश्वास
होगी शांति
चारों ओर एक दिन।
नहीं डर किसी का
आज
नहीं डर किसी का
आज एक दिन
मन में है
विश्वास, पूरा है विश्वास
नहीं डर किसी का
आज एक दिन।
सर्वाधिकार संरक्षित लेखक के पास
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