Friday, 22 September 2017

झरझरी मस्जिद सिराज-ए-हिंद जौनपुर (काव्य)

झरझरी मस्जिद
यह मस्जिद सिपाह जौनपुर मे स्थित है इसका निर्माण इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। यह हजरत शैद जहाँ अजमनी के जौनपुर आगमन के उपलक्ष्य मे बनायी गयी थी। इस मस्जिद को जौनपुर की शर्की कला का उत्क्रिष्ट उदाहरण माना जाता है तथा इसके उपर कुरान की आयते लिखी गयी हैं जिसको लिखने की शैली डगरा है, अलेक्झेन्डर कनिगंघम तथा फ्यूहरर ने इसके उपर की गयी कलाकारी तथा झरोखों को देख कर इसका नाम झंझरी रखा था। इसके मेहराबों को अति कुशलता के साथ तराशा गया है, यह मस्जिद अटालाजामी से छोटी है परन्तु नक्काशी व कलाकारी की द्रिष्टिकोण से यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आज सिर्फ इस मस्जिद का मेहराब बचा हुआ है तथा शेष भाग बाढ व लोदियों द्वारा जमींदोज कर दिया गया। उसको समर्पित मेरी कविता. ये मेरी झरझरी पर पहली कोशिश है जिसे मै आपसबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ|
झरझरी मस्जिद 

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ये अवशेष बोल रहे अपनी एक कहानी|
कभी किसी जमाने मे थी ये जानी पहचानी||
इनकी थी चारो दिशाओं मे अपनी शानी |
ना चलती थी किसी की ईनके आगे मनमानी ||
ईब्राहिम सर्की ने ही ईसकी नींव डाली|
इसको पूरा पूर्ण करा के भी उसने ना हिम्मत हारी||
नाम दिया मौलाना कि याद मे इसको झरझरी|
आया फिर जौनपुर मे सिकन्दर लोदी||
तोड दिया मेहराबो को उसनो जल्दी जल्दी|
चली गयी अन्धकार मे इसकी गरिमा थोडी ||
1932 के बाढ करदी बाकी कसर पूरी|
अब ये जस की तस है जौनपुर मे खडी||
लोग तो लोग प्रशासन भी कुम्भकर्णी निद्रा मे सोरही|
कहे कवि शिवम् ये अवशेष बोल रहे है अपनी स्वर्णिम कहानी||
जो अब तक है लोगो को अनजानी|
जो है ना जानी पहचानी ||



झरझरी मस्जिद लेखन

Monday, 18 September 2017

चौकियाँ धाम Jaunpur ek khoj-1 (Hindu Architecture)


chaukiya temple (चौकियाँ धाम) Jaunpur

chaukiya temple is one of the most famous temple of jaunpur. This temple is one of the most old temple of Jaunpur city. 

the templeis situated 2 kms from the Jaunpur railway station, out side of the city. this post is not a full fledged researched post i will complete my exploration soon and post the full data. 
The worship of Shiv and Shakti has been going on since times immemorial. History states that, during the era of Hindu kings, the governance of Jaunpur was in the hands of Ahir rulers. Heerchand Yadav is considered the first Aheer ruler of Jaunpur. The descendants of this clan used to surname 'Ahir'. These people built forts at Chandvak and Gopalpur.
It is believed that the temple of Chaukiya Devi was built in the glory of their clan-deity either by the Yadavs or the Bhars- but in view of the predilections of the Bhars, it seems more logical to conclude that this temple was built by the Bhars.
The Bhars were non-Aryans. The worship of Shiv and Shakti was prevalent in the non-Aryans. The Bhars held power in Jaunpur. At first, the Devi must have been installed on a praised platform or 'chaukiya' and probably because of this she was referred to as Chaukia Devi. Devi Sheetla is the representative blissful aspect of the Divine Mother: hence she is called as Sheetla. 
चौकिया मंदिर तलाब


Wednesday, 13 September 2017

इश्क तेरा नाम


 ©Shivam Dubey

रूह मे बस गये, लफ्ज पर छा गये.।
मेरे दिल के करीब जबसे तुम आ गये।।

सोचा ना था कि इश्क मे तेरे डूब हम जायेंगे।
हर शौक छोड़ कर इतने करीब तेरे हम आयेंगे।।

नहीं होता सहन तेरा यूँ रूठकर दूर जाना।
करूँ रब से यही दुआ कि करीब है बस तेरे आना।।

मर भी जायें हम तो भी तेरा ही खयाल रहेगा।
दिल की बन्द सांसों मे भी इश्क तेरा ही नाम रहेगा।।

©®शिवम् दूबे

-प्यार क्यूँ होता है-

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कुछ मोहब्बत है।
या तेरी चाहत है।। 

ना जाने क्यूँ अब भी।
मिलती नही राहत है।। 

तू जब मिली थी पहली दफा। देखते ही परवान चढ गया था प्यार।। 

कसम खा लिया था की ना होंगे बेवफा।आज मुझे ही वो कसम याद है।। 

जहाँ भी है वो आबाद है।
हम ही तवाफे इश्क मे बर्बाद हैं।। 

ना जाने क्यूँ आज भी मेरे दिल मे प्यार है।
कसम हमेशा क्यूँ याद रहती है।।

ये क्यूँ ना टर्मस और कंडिशन से आती है।की कुछ ऊपर से लेकर मान जाये।।

और आदमी सब कुछ भूल जाये।ऐसा होना सम्भव नही।।

उसे भूलना मुमकिन नहीं। जिंदा रहना जरूरी है।।

पर उस बिना जीना गवारा नहीं।
अब तो कुछ वर्डसवर्थ वाले ख्याल आते हैं।। 

युटोपिया जैसी एक दुनिया बनाते हैं। जहाँ सब प्यार के फूल खिलाते हैं।। 

महबूबा भी मेरी वहीं आती है।
मेरे जिस्म से आते ही लिपट जाती है।। 

प्यार वहीं परवान चढता है। कामदेव भी वहीं बसता है।। 

हर तरफ बस प्यार ही प्यार है। लबों-जिस्मों के बीच तकरार है।। 

ये सब वहीं युटोपिया मे होता है।
असल मे तो ये दिल रोता है।। 

बार बार हर बार बस ये यही पूछता है। कि 'संगीन' आखिर ये प्यार क्यूँ होता है?

©®शिवम् दूबे



Tuesday, 12 September 2017

परांदा किला व यहाँ का विज्ञान


पिछले ब्लाग मे मै उस्मानाबाद क्षेत्र के अप्रतिम एवं दुर्लभ किले (नलदुर्ग) के बारे में एक लेख लिखा था, वो लेख लिखने के उपरांत यह मन में आया की क्यों ना यहाँ के विज्ञान एवं प्रद्योगिकी पर एक लेख लिखा जाए, और जब बात विज्ञान की आये तो परांदा किले को नकारना शायद ही सही नही होगा, परांदा किला एक थल दुर्ग है जिसके चारों तरफ अन्य दुर्गों की तरह गहरी नाली का निर्माण किया गया है जो की इसको एक सुरक्षा प्रदान करती है तथा इस किले को 18 बुर्जों (Bastions) से सुरक्षित किया गया है| प्रत्येक बुर्ज पर एक तोप को लगाया गया है जो की इस किले को सामरिक रूप से और मजबूत करती हैं| इस किले का निर्माण करीब 16 विं शताब्दी में हुआ था, वैसे सामरिक दृष्टि से इस किले की कोई ख़ास भूमिका नहीं रही है परन्तु इसे हथियार बनाने के लिए प्रयोग में लाया जाता था, नीचे दिए गए चित्रों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है की यहाँ पर तोपों का वृहद् रूप से निर्माण होता था|


बांगडी तोप (रिंग कैनन) मकर तोप व पञ्च या अष्ठ धातु तोप आदि यहाँ के मुख्य तोपों में से हैं, परन्तु विश्व विख्यात मलिक ए मैदान तोप का भी निर्माण इसी किले में हुआ था परन्तु बाद में यह तोप जनरल मुरारी पंडित द्वारा बीजापुर ले जाया गया| अभी कुछ दिन पहले यहाँ के सबसे बड़े तोप को कुछ चोरो ने इस तोप को बुरी तरह से छति पहुचाया है जो की हमारे पूरा सम्पदा के प्रति हमारी सोच को दर्शाता है|परांदा किला घूमने के दृष्टिकोण से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है।


यहाँ पर आने के बाद अनेकोनेक प्रकार के तोप दिखाई देते हैं जो की हमे यह जानकारी प्रदान करते हैं की हमारे यहाँ पर विश्व के सबसे उत्तम कारिगर किसी समय निवास करते थे परन्तु समय के साथ साथ यहाँ से तकनीकि का लोप हो गया, उस्मानाबाद महाराष्ट्र का वह अंग है जो एक समय मे केन्द्र था परन्तु वर्तमान मे सरकार की नीतियों ने इस जिले को पिछड़े जिलों की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर दिया है। आगे के ब्लागों मे मै उस्मानाबाद के बारे मे की जानकारियाँ देने की कोशिश करूँगा जो आप सबको रोचक व ज्ञानवर्धक लगेंगी तथा आप सबका ध्यान उस्मानाबाद की तरफ आकर्षित करेंगी।

शाही किला का स्वर्णिम इतिहास "काव्य"

जौनपुर एक खोज भाग - 2 



जौनपुर गायन कला का केन्द्र रह चुका है अपने स्वर्णिम काल में तथा यहीं पर जौनपुर तोड़ी व राग जौनपुरी का उद्भव हुआ है। संगीत के दृष्टिकोंण से यह सम्पूर्ण भारत मे जाना जाता है। यहाँ के शासक हुसैन शाह खुद एक विशिष्ट लेखक होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट श्रेणी के संगीतकार भी थे तथा उन्हें ही राग जौनपुरी का जनक माना जाता है। यहाँ की गायकी सुबह की गायकी के एक रूप में विकसित हुयी। हुसैन शाह ने उत्तर भारत को गायकी के एक नए रूप से नवाजा तथा यहीं से संगीत का यह नया प्रकार ग्वालिअर के राजा मान सिंह तोमर (1468-1517) ने भी अपने यहाँ की गायकी में सम्मलित किये, दिल्ली सल्तनत में भी राग जौनपुरी का एक महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया था। यहाँ की सांस्कृतिक व पुरातात्विक विरासत को बयाँ करती मेरी यह कविता है, उम्मीद करता हूँ की आपको यह पसंद आयेगी।



किला नही है केवल ये, ये है एक इतिहास |
आज कल लोगो कि करतूते कर रही है इनका परिहास||

क्या कभी सोचा था फिरोज ? कि एेसा वक्त आयेगा|
जब इन्सान केवल कचरा फैलाने इस किले मे जायेगा ||

१५वीं शताब्दी मे बन कर यह तैयार हुयी |
चुनार से लाये बलुयी पत्थर इसकी अंग बनी||

समय बीत गया नये साम्राज्य का उदय हुआ |
सर्की शासक ने इसका अच्छे से जिर्णोद्धार किया ||

हमाम जोकी आज भूलभुलैया नाम से जाना जाता है |
तुर्की वास्तुकला का एक बेहद बढिया नमूना माना जाता है ||

मस्जिद बीच मे बनी हुई है स्तम्भ भी है इसके आगे खड़ा हुआ |
बंगाल की वास्तुकला से है इसका निर्माण हुआ ||

कला के अद्भुत सहयोग से ये किला है बना हुआ |
सिकन्दर लोदी ने इसपर आक्रमण कर अधिकार किया ।।

किले के अन्दर बने ढाँचो का वो संघार किया |
समय बीता अकबर का उदय हुआ ।।

इस किले के पुनः निर्माण का उसने फिर आदेश दिया |
प्रमुख द्वार का निर्माण अकबर ने करवाया ||

लाजवर्द जैसे पत्थरों से इसको सजवाया |
प्रमुख द्वार के बाहर फिर उसने एक स्तम्भ लगवाया ||

हिन्दू मुस्लिम को बिना परेशानी के किले मे जाने की आज्ञाँ खुदवाया |
अकबर ने बगल मे इसके शाही पुल भी बनवाया ||

व्यापारियों को गोमती पार करने का सुगम राह दिखाया |
आज कवि शिवम् सुना रहा है इसकी गजब कहानी ||

लोग सुनो बस ध्यान लगाये दो इसको पहचान |
ना तोड़ो इसको ना फैलाओ कचरे का बड़ा अम्बार ||

स्वच्छ साफ रखो इसको |
बढाओ इसकी शान, ये है जौनपुर की पहचान ये है देश की शान...



Friday, 8 September 2017

जौनपुर का शाही किला


जौनपुर एक खोज भाग 1


दीवारें भी कुछ कहती हैं



                                             जौनपुर के बारे मे तीन चीजें मशहूर हैं 





                                                      "इश्क, इत्र, और इमरती "





                             पर इनके अलांवा जो मशहूर है वो है यहाँ की भवन निर्माण शैली 







तो आइये पढते हैं यहाँ के शाही किले का हाल 

शाही किले की ये दीवारें सहसा ही अपने बीते हुये कल की याद दिला जाती हैं।
कितने ही मौसम बदले, नये लोग आये पुराने गये, पर ये अपने स्थान पर अडिग होकर अपनी शौर्य गाथा का गान कर रही है।






बलुये पत्थर को तराश कर जब कारीगर ने बनाया होगा तब उसे भी शायद ही एेसा लगा होगा की भविष्य मे इस अद्भत कारीगरी को समझने मे लोग कई साल लगा देंगे। तब उन बेचारों को क्या पता होगा कि उनके इस निर्माण पर लोग पि.एच.डी करेंगे और उनके सरल कला का बड़का भारी कर के प्रस्तुत करेंगे। उनको क्या पता था की बड़ा बड़ा शब्द उनके निर्माण को दिया जायेगा। यह भी उसको शायद ही पता होगा की ये शानदार किला ज्यादातर लोगो के लिये मात्र घूमने की जगह रह जायेगा व अपनी प्रेमिका को यहाँ पर ला कर कुछ खुशनुमा पल गुजारने का स्थान मात्र रह जायेगा।  

कभी उस झरोखे मे खड़े होकर यहाँ का शासक जामा मस्जिद का दीदार करता होगा पर आज  बंटी अपनी बबली की याद में उसी झरोखें मे दुद्धी से आई लव यू बबली की तकसीदे लिख रहा है। इस किले की हर पत्थर कुछ ना कुछ कहानी बयां करती है। चुनार की पहाड़ियों से जब पत्थरों को यहाँ लाया जा रहा होगा तो किसी को पता नही होगा की कौन से पत्थर का कौन सा टुकड़ा कहाँ लगेगा।

 सच है दीवार बात करती हैं बस आपकी नजर दिमाग और दिल ईन्हे सुने। किले की इन मिनारों ने कितने ही युद्ध का सामना किया है पर आज भी जिस दृढता के साथ ये अडिग बनी है। इसकी मजबूत नीव व कारीगरी का शानदार नमूना पेश करती हैं। सच है शाही किला अपने शौर्य की गाथा अनिश्चित काल तक गाती रहे यही कामना है मेरी।  कई वंशो के सुल्तानो ने इस भव्य किले को सजाया संवारा। लोदियों द्वार ध्वंसित होने के बाद अकबर जैसे बादशाह ने इसका जिर्णोध्धार कराया यही नही गोमती के दूसरे किनारे को जोड़ने हेतु शाही पुल (अकबरी पुल) का निर्माण भी कराया।  जौनपुर के बारे मे विदेश से आये घुमक्कड़ों ने बड़ी प्रशंसनीय वाक्यों को लिखा, रडयार्ड किपलिंग ने यहाँ पर कविता का भी लेखन किया, विश्व के महान चित्रकार डेनियल्स ने यहाँ के इमारतों पर चित्र भी बनाये पर आज यह शहर मरने की ओर अग्रसर है सिर्फ हमारी बचकानी हरकतों की वजह से। 
दुआ करता हूँ की यह शहर फिर से खड़ा हो और अपनी शौर्य गाथा गाये।  

Tuesday, 5 September 2017

पहाड़गढ़ मोरैना का प्रतिहार कालीन शिव मंदिर

पहाड़गढ मौरैना आदि काल से ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते आ रहा है। यहीं पर पुरापाषाणकालीन शैल चित्रों की भी प्राप्ति हुई है जो की मध्यपाषाण युग से लेकर शुरूआती इतिहास के समय तक का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। इन शैल चित्रों को सर्वप्रथम अमेरिका मे मिशिगन विश्वविद्यालय मे कार्यरत प्रों डी.पी. द्वारकेश ने किया था। मै यहाँ पर विगत 3 वर्षों मे कई अन्वेशण किया जिनसे मुझे कई प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त हुईं तथा कई नये पुरास्थलों का पता भी चला। यहाँ के शैलचित्र पुरास्थल का नाम लेखीछाज है अर्थात् लिखा हुआ छज्जा।


 "यहाँ पर प्रचलित कहानियों पर ध्यान दिया जाये तो यह पता चलता है कि यहाँ पर एक चुडैल का वास था तथा वह देखने मे मेनका से भी सुन्दर थी। एक बार वहीं पास के गाँव के एक व्यक्ति ने उसे देख लिया और वह उसके पीछे पागल हो गया। वह चुड़ैल भी उससे प्रेम करने लगी समय बीतते गया तथा एक दिन उस आदमी का एक दोस्त उससे पूछा की रोज रात को 12 बजे कहाँ जाते हो तो उसने अपनी यह कहानी बताई। कहानी सुनने के बाद उसका दोस्त भी उस चुड़ैल को देखने गया, तथा उसे देखते ही वह भी उसके प्यार मे गिर गया, तथा वह एक षड़यंत्र बनाया और लेखीछाज के उपर से ही धोखे से अपने दोस्त को झोंक दिया। अपने प्रेमी को मृत अवस्था मे देखकर वह चुड़ैल पागल हो गयी और उसने अपने मृत प्रेमी के खून से ही यह सारे चित्र बनायी" । 



यहाँ से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर एक प्रतिहार कालीन मंदिर  उपस्थित है जो आकार मे वृहद तो नही है परन्तु अपने मे कई प्रकार की खूबियों को समाहित किये हुये है। यह मंदिर एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है तथा इस मंदिर के सामने एक तालाब का भी निर्माण करवाया गया है। 



यह मंदिर करीब 9वींसे 10वीं शताब्दी के करीब बनवाया गया था तथा इस मंदिर के प्रमुख देवता शिव हैं। गर्भगृह के बाहर नंदी की मूर्ती उपस्थित है तथा इसके  गर्भगृह के द्वार को बड़ी कुशलता से सजाया गया है। इस मंदिर के मंडप में छतों पर कृष्ण लीला का भी अंकन किया गया है। काम मे लिप्त जोड़ों को भी  इसमें प्रस्तुत किया गया है। (नीचे के चित्रों को देखें)



मंदिर के वाह्य दीवारों पर विष्णू, वाराह आदि के मूर्तियों को दीवारों पर लगाया गया है। सामान्यतया शिव से सम्बन्धित मंदिरों मे विष्णुँ के अवतारों का व स्वयं विष्णुँ की प्रतिमा मंदिरों के दीवारों पर लगायी जाती है।
नीचे दिये गये वीड़ियो मे मूर्तियों व मंदिर के अन्य अंगो को देखें।  




Monday, 4 September 2017

धाराशिव बौद्ध, जैन गुहा

धाराशिव बौद्ध, जैन गुहा के पास

इस गुहा का निर्माण सर्वप्रथम बौद्ध मतानुयायीयों  ने करवाया था तत्पश्चात इसे जैनमतानुयायियों ने भी प्रयोग किया। जैन मतानुयायीयों  ने इन सभी गुहाओं को जैन वास्तुकला से सवारा परन्तु कुछ बौद्ध साछऽयो को वो नही बदल सके जिनमे से चित्र मे चित्रित स्तूप  मुख्य है।



यहाँ की गुफाओं मे एक अलग ही विशेषता दिखाई देती हैं। यहाँ से थोड़ी दूर पर ब्राह्मणी शैली  के भी अपूर्ण गुहाओं की एक श्रृंखला है जो की प्रस्तर के खराब गुड़वत्ता के कारण पूर्ण ना हो सकी थी। 

धाराशिव गुहा क्रमांक तीन के सामने ही एक शिव मंदिर  का भी निर्माण किया गया है जो की 17-18वीं शताब्दी का शिव मंदिर भी उपस्थित है जिसे देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये व्यापारिक मार्ग कई शादियों तक प्रयोग मे रहा होगा। 

                  यह गुहा श्रृंखला प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर स्थित है जिससे इसकी महत्ता और भी बढ जाती है। आसपास का सम्पूर्ण भौगोलिक दशा भी प्राचीन मानव के रहन सहन के लिए अनुकूल है तथा यहाँ पर उपस्थित तलाब  जो कि वास्तविकता मे व्रिहद आकार का है जल की उपलब्धता के दृष्टिकोण से अनुकूल है। 


  यहाँ पर उपस्थित मूर्तियाँ अत्यन्त ही मनमोहक हैं तथा ये जीवंत होने का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। यहां पर स्थित पार्श्वनाथ  की प्रतिमाएं विशाल आकार की है तथा उनमे मूर्ति निर्माण कला का अद्भुत उदाहरण देखने को मिलता है।

 यहां पर जाने के उपरान्त एक विशिष्ट अनुभव की प्राप्ति हुयी। वर्तमान समय मे पत्थर के खराब गुड़वत्ता होने के कारण ये दिनबदिन खत्म होने की तरफ अग्रसर है।  



ये गुफाएँ महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले मे उपस्थित हैं उस्मानाबाद जिला मध्य काल के अलावा प्राचीन काल के कई रहष्यों को अपने में समाहित किए हुए है जिसका भ्रमण हम सभी इतिहास प्रेमियों को एक विशिष्ट अनुभव से कराता है। 

नलदुर्ग (उस्मानाबाद)

नलदुर्ग (उस्मानाबाद)
मिशन उस्मानाबाद- भाग 1

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद में वैसे तो कई पुरास्थल मौजूद हैं। यहीं के परांदा किले से विश्व प्रसिद्द मलिक ए मैदान तोप का निर्माण हुआ था जो की अब बीजापुर में स्थित है। परन्तु यहीं उस्मानाबाद में एक किला मौजूद है जो की आज तक के मेरे देखे हुए किलों में सबसे उत्क्रिस्ट व सुंदर लगा | यह माना जाता है की इसका निर्माण राजा नल ने सर्वप्रथम करवाया था तथा इसी वजह से इसका नाम नलदुर्ग पड़ा। इसके बनने का काल कल्याणी के चालुक्यों के समय से है, कालांतर में बहमनी काल में व आदिल शाही शासकों के समय में इस दुर्ग को कई स्थापत्य कला के नमूनों से सजाया गया जिसमे इसमें निर्मित जलदुर्ग व नव बुर्ज शामिल हैं चित्रों मे नव बुर्ज व जल दुर्ग को दिखाया गया है| 

वास्तविकता में यह किला अपनी स्थापत्य कला के लिए विश्व स्तरीय रूप से उत्तम है, परन्तु करेंगे क्या आज यही अपने वजूद को बचा पाने में असफल हो रहा है, सरकार व इसके संरक्षण कर्ता कुम्भकर्ण बने सो रहे है| और यह अपने स्वर्णिम इतिहास के पन्नों को बचा नहीं पा रहा है। इस किले का भ्रमण करते हुये यह लगता है कि शायद दो दिन भि इस किले को घूमने के लिये कम हैं। प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ यह किला स्थापत्य व अन्य कई कहानियाँ अपने अंदर बसा कर रखा है। इस किले के अंदर एक नदी बहती है जिसपर जलमहल का निर्माण किया गया है तथा इस किले के  एक तरफ खाई है जो वाह्य आक्रमणों से इस किले की सुरक्षा करता था। इस किले के उपली बुर्ज पर तीन तोप रखने का स्थान है जो लम्बी दूरी पर तोप के गोले को दागने मे सक्षम थी।  यह किला वास्तविकता मे भारत का एक महत्वपूर्ण किला है, तथा व्यक्ति को अपने जीवन काल मे एक बार यहाँ जाना चाहिये।

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